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करुणा सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी, जन अनुरागी, प्रकट भये श्रीकंता ॥
@सुनील शुक्ला रायपुर – रायपुर के निकट चंदखुरी में माता कौशल्या मंदिर के अलावा और भी बहुत कुछ अद्भुत है, जिसकी चर्चा कभी कभार ही होती है। एक है फुटहा मंदिर। यानी टूटा-फूटा। खंडहर। अब भला नये जमाने के लोगों को इसमें रुचि क्योंकर होनी चाहिए! लेकिन जरा रुकिए, खंडहरों की खामोशियों को सुनिए, वे बोलती हैं। कथाएं सुनाती हैं।
तो चंदखुरी गांव के खूब भीतर की ओर वह फुटहा मंदिर है। बस्ती तो उसे निगल ही जाती, गर पुरातत्व के जानकारों ने वहां लक्ष्मण-रेखा न खींच रखी होती। बस्ती की बसाहट में गुम होता-होता बच रह गया, यह बताने के लिए कि जब तुलसीदास जी का रामचरित मानस नहीं था, तब भी छत्तीसगढ़ के जन-जन में राम बसा करते थे।
पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि फुटहा मंदिर आठवीं शताब्दी का है, और तुलसीदास जी यही कोई 500 बरस हुए। फुटहा मंदिर में राम कथा के प्रसंग उत्कीर्ण हैं। अर्थ यह हुआ कि तब लोग न केवल राम को जानते थे, बल्कि रामकथा भी जानते थे।
राम के नाम का चमत्कार यह कि वह एक बार उच्चारित होकर हजारों-हजार बार प्रतिध्वनित होता है। एक बार लिखा जाकर हजारों-हजार बार पढ़ा जाता है। एक बार पढ़ा जाकर हजारों-हजार बार मन के भीतर हिलोरें मारता है। उच्चारित और उद्घोषित होने के बाद राम का नाम सर्वव्याप्त हो जाता है। सुनने और पढ़ने वालों के जीवन में चंदन और पानी हो जाता है।
तुलसीदास जी पहले बाल्मिकी ने रामायण संस्कृत में लिखी। राम का नाम रामायण में भला कहां समाता? उसने छलक छलक कर भाषाओं को पूरित किया। संस्कृत से उद्गमित होकर संस्कृति में प्रवाहित होने लगा। राम अयोध्या के राजा बन गये, लेकिन लोक ने उन्हें अपने निकट ही, वनों में बसाए रखा, अयोध्या लौटने न दिया।
राजा राम से ज्यादा वनवासी राम की छवि लोक में बसी रही। शबरी के जूठे बेरों का बड़े प्रेम से भोग लगाते राम, केंवट के आगे पार उतार देने का अनुनय करते राम, वानवासियों को हृदय से लगाते, आलिंगन करते राम।