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बलौदा बाजार अग्निकांड में जेल में बंद निर्दोषों से अमित जोगी नें की मुलाकात

किये 11 चौंकाने वाले खुलासे

सुनील शुक्ला रायपुर – विगत दिनांक 10 जून 2024 को बलौदा बाजार अग्निकांड के अंतर्गत जेल में बंद निर्दोषों से आज जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने बलौदा बाजार जिला जेल में जाकर मुलाकात की और उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन दिया। इस दौरान अमित जोगी ने प्रकरण में पुलिस के द्वारा लगभग 14820 पन्ने के 13 अभियोग पत्रों की खामियां निकालते हुए मीडिया के सामने पुलिस की विवेचना की धज्जियां उड़ाई। अमित ने एक अधिवक्ता होने के नाते, अभियोग पत्रों में 11 ऐसे चौकाने खुलासे किए जिसके आधार पर उन्होंने पुलिस की विवेचना को पूरी तरह फर्जी और भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित करार दिया।

1. बलौदा बाजार पुलिस के द्वारा 10 जून 2024 को रात्रि 9:00 बजे FIR क्रमांक 377/2024 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ पंजीबद्ध किया गया किंतु इसके मात्र आधे घंटे बाद बिना किसी आधार के 9:35 को टी आई सुहेला लखेश केवट के द्वारा अज्ञात के स्थान पर किशोर नौरंगे समेत 10 अन्य आरोपियों के विरुद्ध नामजद सूचना दर्ज कराई गई।

2. इसी क्रम में DR में FIR क्रमांक 377 से 393 के बीच में कुल 13 अलग-अलग FIR, 356 लोगों के विरुद्ध पंजीबद्ध किए गए। इनमें से 186 आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजा जा चुका है, दो आरोपी नाबालिक होने के कारण जमानत पर रिहा है, 86 आरोपी बलोदा बाजार जिला जेल में और शेष 98 आरोपी रायपुर, अंबिकापुर और बिलासपुर केंद्रीय कारावास में निरुद्ध है।

3. FIR क्रमांक 386/2024 में आरोपी ओमप्रकाश बंजारे एवं देवेंद्र यादव को छोड़ सभी शेष FIR में आरोप पत्र दाखिल किए जा चुके हैं और शेष सभी आरोपियों के विरुद्ध पुलिस की विवेचना पूर्ण है। इस आधार पर भी उनको जमानत का लाभ मिलना चाहिए।

4. आरोपियों पर यह आरोप लगाया गया है कि उनके द्वारा अमर गुफा की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दशहरा मैदान बलौदा बाजार में जनसभा का आवेदन किया गया किंतु 14820 पन्ने के 13 अभियोग पत्रों में कहीं पर भी उपरोक्त आवेदन की प्रतिलिपि नहीं है क्योंकि वास्तविकता तो यह है कि उपरोक्त कार्यक्रम का आवेदन भाजपा के वर्तमान जिला अध्यक्ष व पूर्व विधायक सनम जांगड़े द्वारा किया गया था। इससे स्पष्ट है कि जांच दल द्वारा केवल सरकार के विरोधियों को टारगेट किया जा रहा है।

5. 10 जून 2024 को पुलिस उपमहानिरीक्षक द्वारा जारी बंदोबस्त आदेश के अनुसार दशहरा मैदान, तहसील ऑफिस, चक्रपाणि स्कूल चौराहा, संयुक्त कार्यालय भवन, डीएफओ बंगले, सोनपुरी रोड जिला अस्पताल, अनुसूचित जाति हॉस्टल, पुलिस लाइन गार्डन, इंडोर स्टेडियम मुख्य गेट और कलेक्टर कार्यालय एवं पुलिस कार्यालय मुख्य गेट समेत 10 अलग-अलग स्थानों में बैरिकेडिंग की व्यवस्था किया जाना दर्शाया गया है जबकि वास्तविकता यह है कि केवल चक्रपाणि स्कूल चौराहा और अनुसूचित जाति हॉस्टल के सामने ही हल्की-फुल्की बैरिकेडिंग की व्यवस्था की गई थी।

6. दशहरा मैदान से कलेक्ट्रेट तक पूरे मार्ग में 34 सीसीटीवी कैमरे यातायात पुलिस के द्वारा लगाया जाना बताया है किंतु आरोप पत्र में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है कि इनमें से 10 गायब, टूटे हुए और 18 बंद थे। मात्र दो कैमरों से प्राप्त करीब 9 घंटे की CCTV फुटेज को आरोप पत्र में सम्मिलित किया गया है। पूरी फुटेज में कोई भी आरोपी अपराधिक कृत करते नहीं दिख रहा है।

7. आरोप पत्र में 9 पुलिस कर्मियों को चोटिल होना बताया गया है किंतु उनकी मेडिकल रिपोर्ट से स्पष्ट है कि सभी चोटें मामूली थी एवं किसी भी परिस्थिति में यह जानलेवा (धारा 307 IPC) की परिभाषा में नहीं आती है।

8. आरोप पत्र से यह भी स्पष्ट होता है कि लगभग ₹1 करोड की वाहनों को क्षति, जिसमें 28 मोटरसाइकिल, 2 फायर ब्रिगेड, 2 शासकीय वाहन सम्मिलित है तथा कलेक्ट्रेट एवं एसपी संयुक्त कार्यालय में लगभग ₹2 करोड़ की क्षति पहुंची है। इस प्रकार इस पूरे प्रकरण में केवल ₹3 करोड़ की संपत्ति को क्षति पहुंची है जबकि पुलिस द्वारा प्रकरण की विवेचना में इससे कई गुना ज्यादा राशि खर्च की जा चुकी है।

9. इसके अलावा आरोप पत्र में तीन प्रकार के सबूत होना बताया गया है –
A. पुलिस कर्मियों के बयान (जो साक्ष्य में ग्राह्य नहीं हैं)।
B. 186 आरोपी की मात्र 06 गैर-शासकीय और तथाकथित रूप से “स्वतंत्र” गवाहों के द्वारा तहसीलदार के समक्ष शिनाख्त की। उपरोक्त 6 गवाहों में से 2 गवाह POSCO जैसे संगीन जुर्म में आज भी जेल में है तथा शेष 4 गवाह भी सिटी कोतवाली थाने में आदतन अपराधी की सूची में लेखबन्द हैं। इनकी “स्वतंत्रता” पर कतई भी विश्वास करना बेवक़ूफ़ी होगी।
C. बेमेतरा, दुर्ग, कवर्धा, बिलासपुर, मुंगेली, जांजगीर और सक्ती जैसे अलग-अलग जिलों से पुलिस के द्वारा आरोपियों के घरों से पत्थर, बांस के डंडे और लोहे की रॉड की बरामदगी होना बताया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार ऐसी सभी बरामदगी मौक़ाए वारदात पर मौजूद स्वतंत्र पंचों के सामने करना अनिवार्य है। किंतु उपरोक्त सभी तथाकथित “हथियारों” की बरामदगी के सभी गवाह भी उपरोक्त 6 आदतन अपराधी ही हैं।

10. आरोप पत्र की यह बात भी बेहद हास्यास्पद एवं अव्यवहारिक है कि आरोपिगण पुलिस पर “हमले के दौरान फेंके” पत्थर, बाँस के डंडे और लोहे की रॉड को अपने-अपने घरों में सुरक्षित स्थानों में छुपा कर रखेंगे- जहाँ से पुलिस ने उनकी ज़ब्ती दर्शायी है।

11. आरोप पत्र में धारा 65-B, IT Act के अंतर्गत प्रस्तुत मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स, वीडियो रील और फोटो और दो CCTV कैमरा की फुटेज से यह कहीं से भी प्रमाणित नहीं होता है कि आरोपियों ने किसी को भी चोटिल किया अथवा कोई भी लोक संपत्ति को क्षतिग्रस्त किया हो।

अतः अगर 14820 पन्ने के 13 अभियोग पत्रों में वर्णित उपरोक्त सभी 11 तथाकथित “तथ्यों” को सही भी मान लें, तब भी सभी 186 आरोपियों के विरुद्ध FIR में दर्ज सभी अपराधों के आवश्यक अवयव की पूर्ति के अभाव में उनके विरुद्ध अधियोजन, सिरे से खारिज होना चाहिए।

SURAJ GUPTA

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